चन्द्रपुरा का राजा अपनी धर्मपत्नी के साथ अपने जीवन में बहुत ही सुख से जीवन यापन करता था। उसके राजमहल में उसके ऐसोआराम के लिए हर समान थी। अपने इन्हीं राजशाही का घमन्ड भी था। वह अपनी प्रजा पर बहुत ही अत्याचार करता था। इसी कारण उसके प्रजा उससे हमेशा घृणा करते थे और मन ही मन उसे बददुआ देते थे। राजा का इकलौता पूत्र जिसे राजा-रानी बहुत ही चाहते थे।
राजा और रानी अपने पुत्र पर इतना विश्वास था कि वे निश्चित यह सोच कर रहते थे कि उसके बाद उनका राज-पाट संभालने वाला उत्तराधिकारी उसका पुत्र बन जाएगा और वे खुशी-खुशी अपना जीवन यापन करते रहेंगे और वे यही समझते थे वे इस दुनिया के सबसे सुखवान दंपति हैं और उन्हें किसी भी प्रकार का कोई दुख नहीं हो सकता। एक दिन आचानक किसी दुर्घटना में उसके इकलौते बेटे की मौत हो जाती है। अब उनके सबकुछ तो होता है पर उसे भोगने वाला उसका कोई संतान नहीं होता। इससे वे दुनिया के सबसे दुखी इंसान बन जाते हैं।
उसी राज्य का एक लकहाड़ा दंपती रहते थे उन दोनों का संतान नहीं था। वे रोज जंगल से लकड़िया लाते और बेच कर अपना जीवन यापन करते। इसके साथ-साथ वे दूसरे के कष्टों में शामिल भी होते और हर संभव मदद किया करते थे। सभी के लिए अच्छे मन से दूआ मांगते थे कि सभी सुखी रहें भले उनके पास खाने के लिए कुछ न हो परन्तु उनके घर से कोई भुखा न जाए।
एक दिन लकहाड़ा जंगल में लकड़ी काट रहा था। उसे बच्चे की राने आवाज आई, जब उसने इधर-उधर देखा तो पास के झाड़ियों में एक बच्चे को देखा। लकड़हारे ने उसे तुरन्त घर ले आया और पत्नी को बताया। दोनों ने उसे अपना बेटा बनाकर पालने लगे। इसमें लोगों ने भी उसके खूब मदद की। लकड़हारा दंपती बहुत खुशी-खुशी बच्चे के साथ जीवन गुजारने लगे।
यही होता है क्रमों का फल… जैसा आप करोगे वैसा एक-न-एक दिन वापस मिल ही जाता है।