Who are Bhikhari Thakur (भिखारी ठाकुर कौन हैं) : भिखारी ठाकुर का नाम भोजपुरी समाज में किसी पहचान का मोहताज नहीं है। जो भी लोग भोजपुरी बोलते या समझते हैं, वो कभी ना कभी भिखारी ठाकुर के नाम से रूबरू जरुर हुए होंगे। वे बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे। वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। उनकी मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक की भाषा बनाई थी। वे देश के तमाम लोक नाट्य कलाकारों मे से एक थे। इसलिए उन्हे भोजपुरी का शेक्सपियर भी कहा जाता था।
भिखारी ठाकुर कौन हैं ?
भिखारी ठाकुर का जन्म कब हुआ था : भोजपुरी के महान रचनाकार एवं नाट्य कलाकार भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसम्बर 1887 को हुआ। उनका जन्म तत्कालीन ब्रिटिश राज के बंगाल राज्य ( वर्तमान बिहार) के छपरा जिले मे एक छोटे से गाँव कुतुबपुर मे हुआ था। और उनका स्वर्गवास 10 जुलाई 1971 को हुआ। वह एक सामान्य से नाई (हजाम) परिवार से ताल्लुक रखते थे।
भिखारी ठाकुर के माता-पिता के नाम क्या हैं ?
उनके पिता का नाम दलसींगर ठाकुर और उनके माँ का नाम शिवकली देवी था। पिता सहित पूरा ठाकुर परिवार अपनी जाति व्यवस्था के अंतर्गत तमाम कार्य करते थे। उस समय बिहार मे नाई समाज का काम उस्तरे से हजामत बनाना मात्र नहीं था। बल्कि चिठी न्योतना शादी, विवाह, जन्म, एवं श्राद्ध आदि संस्कारों के कार्य किया करता था। हम आपको बताते चले कि आज भी ये व्यवस्था बिहार के कई हिस्सों मे बदस्तूर जारी है।
Bhikhari Thakur की पढ़ाई
जब भिखारी ठाकुर 9 वर्ष के थे तब उन्होंने विद्यालय जाना प्रारंभ किया। किन्तु एक साल बीत जाने के बाद भी उन्हें अक्षर ज्ञान नहीं मिला। उनका पढाई लिखी में बिलकुल भी मन नहीं लगता था और उन्होंने अपनी विधिवत पढाई छोड़ दी। कुछ समय तक उन्होंने अपने गायों को भी चराया।उसके पश्चात उन्होंने अपना खानदानी पेशा यानी कि हजामत बनाना भी सीख लिया। अब उनमें फिर से पढाई लिखाई के प्रति रूचि बढ़ने लगी। तब उनके गाँव के ही एक बनिया समाज के व्यक्ति, जिनका नाम भगवाना था, ने भिखारी ठाकुर को पढ़ना लिखना सिखाया।
चूंकि अब भिखारी ठाकुर हजामत बनाना सीख चुके थे, उन्होंने सोचा कि क्यों ना किसी शहर में जाकर अच्छी कमाई की जाये। इसलिए वो पहले खड़गपुर और उसके बाद मेदिनीपुर गए। वहीँ पर उन्होंने रामलीला का मंचन देखा, जो उन्हें बहुत ही पसंद आया। कुछ समय बाद वे अपने गाँव लौट आये। अब गाँव में ही गीत-कविता सुनने लगे और उन्हें इसमें काफी रूचि भी आने लगी। जिन गीत-कविता का मतलब उन्हें समझ नहीं आता तो, वे लोगों से उसका अर्थ पूछ लिया करते थे। और इसी सुनने और समझने की कड़ी में उन्होंने खुद ही गीत-कवित्त, दोहा-छंद लिखना शुरू कर दिया।
केवल रामचरित मानस पढ़ लेते थे
कैसे एक नाई बना भोजपुरी का शेक्सपियर ?
मेदिनीपुर आना भिखारी ठाकुर के जीवन की सबसे प्रमुख घटना रही। वहां उन्होंने रामलीला देखा और उनके भीतर का कलाकार धीरे-धीरे उन पर हावी होना शुरू हो गया. हाथ से उस्तरे छूटते गए और मुंह से कविताओं का प्रवाह फूटना शुरू हो गया। वापस गांव आए और गांव में ही रामलीला का मंचन करना शुरू कर दिया। लोगों ने उनकी रामलीला की काफी सराहना भी की। अब भिखारी ठाकुर को ये समझ आ गया कि इसी क्षेत्र में उनका भविष्य है। इस बीच घरवालों के विरोध और अपनी उम्मीदों के बीच जूझते हुए सिंगार ठाकुर का बेटा धीरे-धीरे बिहारी ठाकुर के नाम से जाना जाने लगा।
भिखारी ठाकुर की प्रसिद्ध रचनाएं
उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में बिदेसिया, भाई-बिरोध, बेटी-बियोग या बेटि-बेचवा, कलयुग प्रेम, गबरघिचोर, गंगा असनान, बिधवा-बिलाप, पुत्रबध, ननद-भौजाई, बहरा बहार आदि शामिल हैं. भिखारी ठाकुर का कथा संसार किसी किताबी विमर्श के आधार पर कल्पनालोक के चित्रण पर आधारित नहीं था. किताबी ज्ञान के नाम पर भिखारी ठाकुर बिल्कुल भिखारी रह गए थे. उनकी लेखनी के पात्र और घटनाओं में उनका खुद का भोग और देखा समझ यथार्थ था. भिखारी ने शब्द ज्ञान से लेकर चिंतन के असीमित क्षेत्र का ज्ञान तक लोकजीवन से ग्रहण किया था और यही उनकी रचनाओं की सबसे बड़ी उपलब्धि भी रही.
प्रासंगिक हैं भिखारी ठाकुर के नाटक
खुद किताबों से अक्षर ज्ञान न प्राप्त कर पाने वाले भिखारी ठाकुर पर अब तक सैकड़ों किताबें लिखी जा चुकी हैं. उनकी रचनाएं इतनी विस्तृत हैं कि तत्कालीन बिहार का पूरा सामाजिक विवरण उनके कुछ नाटकों के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है. उनके नाटकों में जिन समस्याओं पर बात हुई है, वो सब आज भी समाज मे व्याप्त है. विस्थापन, स्त्री चेतना, वृद्धों, विधवाओं आदि पर लिखे गए बिहारी साहित्य की आवश्यकता आज के समाज को भी उतनी ही है.
साहित्यिक परिचय कैसा रहा ?
भिखारी ठाकुर का रचनात्मक संसार बेहद सरल है- देशज और सरल। इसमें विषमताएँ, सामंती हिंसा, मनुष्य के छल-प्रपंच- ये सब कुछ भरे हुए हैं और वे अपनी कलम की नोंक से और प्रदर्शन की युक्तियों से इन फोड़ों में नश्तर चुभोते हैं। उनकी भाषा में चुहल है, व्यंग्य है, पर वे अपनी भाषा की जादूगरी से ऐसी तमाम गांठों को खोलते हैं, जिन्हें खोलते हुए मनुष्य डरता है। भिखारी ठाकुर की रचनाओं का ऊपरी स्वरूप जितना सरल दिखाई देता है, भीतर से वह उतना ही जटिल है और हाहाकार से भरा हुआ है। इसमें प्रवेश पाना तो आसान है, पर एक बार प्रवेश पाने के बाद निकलना मुश्किल काम है। वे अपने पाठक और दर्शक पर जो प्रभाव डालते हैं, वह इतना गहरा होता है कि इससे पाठक और दर्शक का अंतरजगत उलट-पलट जाता है। यह उलट-पलट दैनंदिन जीवन में मनुष्य के साथ यात्रा पर निकल पड़ता है। इससे मुक्ति पाना कठिन है। उनकी रचनाओं के भीतर मनुष्य की चीख भरी हुई है। उनमें ऐसा दर्द है, जो आजीवन आपको बेचैन करता रहे। इसके साथ-साथ सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गहन संकट के काल में वे आपको विश्वास देते हैं, अपने दु:खों से, प्रपंचों से लड़ने की शक्ति देते हैं।
भिखारी ठाकुर का निधन कब हुआ ?
भिखारी ठाकुर का निधन 10 जुलाई, सन 1971 को 84 वर्ष की आयु में हो गया। भिखारी ठाकुर को साहित्य और संस्कृति की दुनिया के पहलुओं ने प्रसिद्ध नहीं किया और न ही जीवित रखा। उनकी प्रसिद्ध और व्यापक स्वीकार्यता के कारण उनकी रचनाओं के गर्भ में छिपे हैं। वे इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि नाटक कभी पुराना नहीं होता। उसे हर क्षण नया रहना पड़ता है और यह तभी संभव है, जब उसके भीतर मनुष्य समग्रता के साथ जीवित हो। उन्होंने जीवन से जो अर्जित किया उसी की पुनर्रचना की। आज भारतीय ग्रामीण समाज उन तमाम दु:खों से जूझ रहा है, जिनकी ओर वे अपनी रचनाओं से संकेत करते हैं। ‘भाई-विरोध’, ‘बेटी-वियोग’, या ‘पुत्रवध’ – उनके इन तमाम नाटकों में मनुष्य के आपसी संबंधों के छीजते जाने की पीड़ा है।
उनकी प्रमुख रचनाएँ व नाटक
- बिदेशिया
- भाई-विरोध
- बेटी-वियोग
- कलियुग-प्रेम
- राधेश्याम-बहार
- बिरहा-बहार
- नक़ल भांड अ नेटुआ के
- गबरघिचोर
- गंगा स्नान (अस्नान)
- विधवा-विलाप
- पुत्रवध
- ननद-भौजाई
अन्य रचनाएं : शिव विवाह, भजन कीर्तन: राम, रामलीला गान, भजन कीर्तन: कृष्ण, माता भक्ति, आरती, बुढशाला के बयाँ, चौवर्ण पदवी, नाइ बहार, शंका समाधान, विविध।
भिखारी शेक्सपियर की उपाधि किसने दी ?
भिखारी जब खड़गपुर से लौट कर अपने गांव आए तो उस समय पलायन की समस्या काफी अधिक होने की वजह से वह अपने आस-पड़ोस में इन समस्याओं से दो-चार हो रहे थे. इसके बाद उन्होंने अपने नाटक, लोकगीत व दोहा के माध्यम से पलायन की समस्या व महिला की समस्या पर लोगों को ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया. देहाती भाषा में जिस तरह से उन्होंने इन समस्याओं पर चोट किया वह आज भी और आने वाले समय में भी साहित्य में एक उदाहरण के तौर पर सामने आते रहेगा. अपनी बात को सटीक तरह से कहने के इसी खास गुण की वजह से राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें ‘भोजपुरी का ‘शेक्सपियर’ की उपाधि दे दी थी.
भिखारी महिलाओं के प्रति नजरिया कैसा था ?
भिखारी की रचना में महिलाओं के संघर्ष को हुबहू उसी तरह दिखाने का प्रयास किया गया है, जो वास्तव में है. महिलाओं की पीड़ा, पितृसत्ता सोच पर प्रहार निरा देसी और देहाती भाषा में करने की जो कला भिखारी में है वह भोजपुरी के शायद किसी दूसरे साहित्यकार में हो. यही नहीं बिहार में लौंडा नाच के माध्यम से अपने गीत को लोगों के बीच लोकप्रिय कर अपनी बात को समाज के बीच पहुंचाना भिखारी ही कर सकते हैं. भिखारी के कई गीत तो बिहार की महिलाओं के होंठ पर है.
‘सिर्फ लोकगीत नहीं नाटक कला में भी भिखारी का कोई जोर नहीं’
भिखारी ठाकुर रंगमंच के भी हिस्सा थे. यही वजह है कि देश और विदेश में भिखारी ठाकुर के नाटकों का मंचन किया गया है. यही नहीं भिखारी पर तो फिल्म “नाच भिखारी नाच” का तकरीबन 18 देशों में स्क्रीनिंग हो चुका है. हाल ही में भिखारी ठाकुर के शिष्य, रामचंद्र मांझी, को राष्ट्रपति द्वारा संगीत नाटक अकादमी सम्मान दिया गया है. रामचंद्र मांझी भी भिखारी ठाकुर रंगमंच का हिस्सा है. अपने एक नाटक गबरघिचोर में भिखारी ने गिरमिटिया, चटकलिहा मजदूरों, किसानों के पलायन की संस्कृति पर प्रहार किया है. दिखाया है कि किस तरह से पति के घर से बाहर रहने पर पत्नी विरह में जिंदगी जी रही होती है और अंत में अवैध संबंध से एक बच्चे का जन्म होता है.
कीर्तन करने हेतु भजन भी लिखे थे
भिखारी ठाकुर ने कीर्तन करने हेतु भजन भी लिखे थे जिनमें शिव-विवाह, भगवान राम के जीवन पर आधारित भजन थे। उन्होंने गायन शैली में रामलीला की कथा लिखी थी जिसमें तुलसीदास रचित आठों कांडों का वर्णन था जिसे मुख्य अभिनेता गाता था। इसी तर्ज़ पर गायन शैली में कृष्णलीला भी लिखी जिसमें कृष्ण के जीवन की लीलाओं का वर्णन था, इसे भी मुख्य अभिनेता गाता था। आरती के खंड में शिव, कृष्ण, दुर्गा, गंगा एवं राम की आरती थीं। ‘माता भक्ति’ में माँ का महत्व, त्याग तथा वृद्धावस्था में पुत्र द्वारा माँ को त्याग देने की कहानी थी। भिखारी ठाकुर ने गायन शैली में ‘बूढ़शाला के बयान’ में बुढ़ापे में होने वाली समस्यायों का उल्लेख किया था और उस समय बूढ़शाला (ओल्ड ऐज होम्स) की मांग की थी जब इसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था, ये उनकी दूरदृष्टि का परिचायक था।
‘चौवर्ण पदवी’ जाति व्यवस्था के चार वर्णों में विभाजित होने पर गहरा कटाक्ष था। चूंकि भिखारी ठाकुर स्वयं नाई जाति के थे जो पिछड़े वर्ग में आती थी जिसके कारण नाईयों को शोषण-दमन आदि समस्याओं से दो-चार होना पड़ता था अतः ‘नाई बहार’ में उन्होंने अपनी जाति के इसी दुःख को बयां किया था। ‘शंका-समाधान’ में भिखारी ठाकुर ने तथाकथित विद्वानों और प्रकाशकों द्वारा अपनी कृतियों की चोरी होने के बारे में अपने पाठकों की शंकाओं का समाधान करते हुए असली और नक़ली का भेद बताया था। भिखारी ठाकुर ने ‘विविध’ में सत्यनारायण की पूजा का महत्व, चउथ चंदा गीत, छपरा से सम्बंधित गीत लिखे थे। ‘भिखारी ठाकुर परिचय’ जीवनी थी जिसमें उन्होंने अपना परिचय, पूर्वजों के वृतांत, अपनी जन्मभूमि, रचनाओं, अपने मान-सम्मान और बुढ़ापे में अपनी बीमारी के बारे में लिखा था।
FAQ
Q. भिखारी ठाकुर को कौन सा पुरस्कार मिला था?
A. Bhikhari Thakur को भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया था।
Q. प्रसिद्ध भोजपुरी कथाकार कौन है?
A. प्रसिद्ध भोजपुरी कथाकार भिखारी ठाकुर को बोला जाता है।
Q. Bhikhari Thakur का जन्म कब हुआ था ?
A. भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसम्बर 1887 को हुआ।
Q. Thakur के माता-पिता के नाम क्या है?
A. भिखारी के पिता का नाम दलसींगर ठाकुर और उनके माँ का नाम शिवकली देवी था।