शख्सियत : संत रविदास जी का संपूर्ण इतिहास जानिए

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Know About Sant Ravidas
संत रविदास जी का संपूर्ण इतिहास जानिए (Sant Ravidas) : भारत में 15वीं शताब्दी के संत परंपरा में एक चमकते नेतृत्वकर्ता और उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन को नेतृत्व देने वाले महान संत, दर्शनशास्त्री, कवि, समाज-सुधारक और ईश्वर के अनुयायी संत थे शिरोमणि रविदास जिन्होंने लोगों को जातिवाद को छोड़कर प्यार करना सिखाया। रविदास जी (Sant Ravidas) ने हमेशा ही अपने दोहों और रचनाओं के जरिए लोगों को समाज में फैली बुराइयों और कुरीतियों के बारे में बताया है और इन्हें दूर करने के लिए प्रोत्साहित किया है। रविदास जी ने सभी को भगवान की भक्ति के लिए प्रेरित किया है, इसके साथ ही सच्चाई की राह पर चलने की भी प्रेरणा दी है।
ऐसे पड़ा नाम: 
संत शिरोमणि रविदास जी का जन्म माघ पूर्णिमा को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोवर्धनपुर गांव में हुआ था। संत रविदास कबीरदास के समकालीन और गुरुभाई कहे जाते हैं. रविदास जी (Know About Sant Ravidas) के जन्म को लेकर कई मत हैं  लेकिन कई विद्वानों का कहना है कि इनका जन्म साल 1398 में हुआ था. कहते हैं कि जिस दिन उनका जन्म हुआ उस दिन रविवार था, इसलिए उनका नाम रविदास रखा गया। संत रविदास जी के पिता का नाम संतोष दास था, वहीँ माता का नाम कर्मा देवी था। उनके दादाजी का नाम कालूराम जी था।रविदास जी की पत्नी का नाम लोना जी और पुत्र का नाम विजय दास जी है।
चर्मकार कुल में हुआ जन्म
कवि रविदास जी चर्मकार कुल से वास्ता रखते हैं जो कि जूते बनाते थे। उन्हें यह कार्य करके बहुत खुशी होती थी। वह बड़ी लगन और मेहनत के साथ अपना कार्य करते थे। दरअसल, रविदास जी के पिता चमड़े का व्यापार करते थे, वह जूते भी बनाया करते थे।
किसी धर्म से नहीं, सिर्फ मानवता से था मतलब
जब रविदास जी का जन्म हुआ उस समय उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था और हर तरफ अत्याचार गरीबी भ्रष्टाचार  और अशिक्षा का माहौल था। उस समय मुस्लिम शासकों का प्रयास रहता था कि वह ज्यादा से ज्यादा हिंदुओं को मुस्लिम बनाएं। रविदास जी की ख्याति दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी, जिसके चलते उनके लाखों भक्त थे। जिसमें हर जाति के लोग शामिल थे। इसको देखकर एक मुस्लिम सदना पीर उनको मुस्लिम बनाने आया था। उसका मानना था कि यदि उसने रविदास जी को मुस्लिम बना लिया तो उनसे जुड़े लाखों भक्त भी मुस्लिम बन जाएंगे। मुसलमान बनाने को लेकर हर प्रकार का दबाव रविदास जी पर बनाया गया, लेकिन संत रविदास जी तो संत थे। उन्हें किसी धर्म से मतलब नहीं था उन्हें तो सिर्फ मानवता से मतलब था।
पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब में सम्मिलित हैं 40 पद 
संत रविदास जी बहुत ही दयालु और दानवीर थे। रविदास जी के करीब 40 पद सिख धर्म के पवित्र धर्म ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में भी सम्मिलित किए गए हैं। बताया जाता है कि स्वामी रामानंदाचार्य वैष्णव भक्ति धारा के महान संत हैं, वह रविदास जी के शिष्य थे।
चित्तौड़गढ़ में वह स्वर्गारोहण की कहानी
चित्तौड़गढ़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी भी रविदास की शिष्य रह चुकी हैं। चित्तौड़गढ़ में संत रविदास जी की छतरी भी बनी हुई है कहा जाता है कि मैं चित्तौड़गढ़ में वह स्वर्गारोहण कर गए थे। हलांकि इसका कोई आधिकारिक विवरण नहीं है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि वाराणसी में 1540 ईस्वी में उन्होंने अपना देह छोड़ दिया था। वाराणसी में संत रविदास जी का एक भव्य मंदिर और मठ है जहां हर जाति के लोग दर्शन करने जाते हैं, वहीँ वाराणसी में श्री गुरु रविदास पार्क भी है जो उनकी याद में बनाया गया था।
‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’:
संत रविदास की मशहूर कहावत ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ आज भी लोगों के बीच प्रचलित है। इस कहावत का अर्थ है अगर व्यक्ति का मन शुद्ध है, किसी काम को करने की उसकी नीयत अच्छी है तो उसका हर कार्य गंगा के समान पवित्र है। दरअसल इस कहावत का जन्म उस समय हुआ, जब एक बार संत रविदास के कुछ विद्यार्थी और अनुयायी ने पवित्र नदी गंगा में स्नान के लिये पूछा तो उन्होंने ये कह कर मना किया कि उन्होंने पहले से ही अपने एक ग्राहक को जूता देने का वादा कर दिया है तो अब वही उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है. रविदास जी के एक विद्यार्थी ने उनसे दोबारा निवेदन किया तब उन्होंने कहा उनका मानना है कि “मन चंगा तो कठौती में गंगा” मतलब शरीर को आत्मा से पवित्र होने की जरुरत है ना कि किसी पवित्र नदी में नहाने से, अगर हमारी आत्मा और हृदय शुद्ध है तो हम पूरी तरह से पवित्र है चाहे हम घर में ही क्यों न नहाये। इस कहावत का अर्थ है  अगर व्यक्ति का मन शुद्ध है, किसी काम को करने की उसकी नीयत अच्छी है तो उसका हर कार्य गंगा के समान पवित्र है।
संत शिरोमणि से जुड़ी अनकही कुछ खास बातें :
संत रविदास को जूते बनाने का काम पैतृक व्यवसाय के तौर पर मिला। वो अपना काम पूरी लगन से करते। यही नहीं, वे समय के पाबंद भी थे।
कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई :
उन्होंयने समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई. छुआछूत आदि का उन्हों ने विरोध किया और पूरे जीवन इन कुरीतियों के खिलाफ ही काम करते रहे। उन्होंने लोगों को संदेश दिया कि ईश्वर ने इंसान बनाया है ना कि इंसान ने ईश्वर बनाया है अर्थात इस धरती पर सभी को भगवान ने बनाया है और सभी के अधिकार समान है। इस सामाजिक परिस्थिति के संदर्भ में संत गुरु रविदास जी ने लोगों को वैश्विक भाईचारा और सहिष्णुता का ज्ञान दिया।
मीराबाई भी संत रविदास की शिष्या थीं!
संत रविदास ने अपना जीवन प्रभु की भक्ति और सत्संग में बिताया था। वह बचपन से ही प्रभु की भक्ति में लीन रहते थे। उनकी प्रतिभा को जानकर स्वामी रामानंद ने उन्हें अपना शिष्य बनाया। मान्यता है कि कृष्ण भक्त मीराबाई भी संत रविदास की शिष्या थीं। कहते हैं कि मीराबाई को संत रविदास से ही प्रेरणा मिली थी और फिर उन्होंने भक्ति के मार्ग पर चलने का निर्णय लिया। मीराबाई के एक पद में उनके गुरु का जिक्र मिलता है ।
संत रविदास जी के अनमोल वचन :
इंसान छोटा या बड़ा अपने जन्म से नहीं बल्कि अपने कर्मों से होता है। व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊँचा या नीचा बनाते हैं।
अज्ञानता के कारण सभी लोग जाति और पंथ के चक्र में फंस गए हैं। अगर वह इस जातिवाद से बाहर नहीं निकला तो एक दिन जाति की यह बीमारी पूरी मानवता को निगल जाएगी।
किसी की जाति नहीं पूछनी चाहिए क्योंकि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं। यहां कोई जाति, बुरी नहीं है।
भले ही कोई हजारों वर्षों तक भगवान का नाम लेता रहे, लेकिन जब तक मन शुद्ध न हो, तब तक ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है।
जो मनुष्य केवल शारीरिक स्वच्छता और बाहरी सुंदरता पर ध्यान देता है और मन की पवित्रता पर ध्यान नहीं देता है, वह निश्चित रूप से नरक में जाएगा।
जब तक क्षमता है, मनुष्य को ईमानदारी से कमाना और खाना चाहिए।
केवल ऊँचे कुल में जन्म लेने से कोई ब्राह्मण नहीं हो जाता। असली ब्राह्मण वही है जो ब्रह्म (ब्रहात्मा) को जानता है।
निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे:
रविदास जी धर्म के नाम पर प्रचलित अंधविश्वास, आडंबर और कर्मकांड को निरर्थक मानते थे। इनकी भक्ति-साधना में भावुकता, विनम्रता और प्रेम की प्रधानता है। आचरण की पवित्रता पर विशेष बल है। संत रविदास गुरु-महिमा और सत्संग के समर्थक हैं। वह मानते हैं कि सत्संगति के बिना भगवान के प्रति प्रेम नहीं हो सकता और भगवत प्रेम के बिना मुक्ति नहीं हो सकती। रविदास उस निर्गुण ब्रह्म के उपासक हैं, जो ‘गरीब नवाज’ और ‘पतित-पावन’ है और भक्तों के उद्धार के लिए साकार रूप धारण करता है। संत रविदास जी काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहं को त्याज्य मानते हैं।
आज भी लोग श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं:
आज भी संत रविदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण आज भी संत रविदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण संत रविदास को अपने समय के समाज में अत्यधिक सम्मान मिला और इसी कारण आज भी लोग इन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं।

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